कविता – भोर हुई

किरणो के रथ पर सवार, 

आए “दिनकर” अभिनंदन हो जय जयकार, 

ठिठुर कर छुप गई है अंधकार, 

जब जगमगाया पूरब का द्वार, 

शंख, गान, आरती से गूंज उठा चारो दिशा, 

भोर के आगमन के स्वागत में डूबा पूरा संसार, 

ओस की बूंदों ने प्रकृति को शोभायमान किया, 

भोर की बेला में मन मयूर बन झूम उठा।।

By – Supriya Shaw…✍️🌺

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