उत्तराखंड की ऐपण कला

ऐपण

भारत के उत्तराखंड राज्य में दो प्रमुख मंडल हैं गढ़वाल और कुमाऊं।

कुमाऊं क्षेत्र के एक प्रमुख लोक कला है जिसका नाम है ऐपण।

ऐपण क्या है ? 

“ऐपण” शब्द संस्कृत के शब्द “अर्पण” से लिया गया है। 

“ऐपण” का शाब्दिक अर्थ होता है “लिखना”।

ऐपण उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रत्येक त्योहार, शुभ अवसर, धार्मिक अनुष्ठान, नामकरण संस्कार,  आदि पवित्र समारोह का एक अभिन्न अंग है, जिसमें तरह-तरह की आकृतियां, चित्र बनाए जाते हैं।

 ऐपण कहाँ बनाए जाते हैं ?

ऐपण फर्श, दीवारों, घरो के प्रवेश द्वार, पूजा का क्षेत्र, मंदिर में चौकियों पर, पूजा की थाल में, पूजा के आसन में, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए जो आसन बनाए जाते हैं उनमें और अब तो आधुनिक रूप से विभिन्न प्रकार के पेंटिग्स में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है ।

ऐपण बनाने की पारंपरिक विधि 

उत्तराखंड के कुमाऊं में प्रत्येक महीना दिवाली के शुभ अवसर पर मुख्य त्योहारों पर अपने घरों को ऐपण से जरूर सजाती है।

परंपरागत रूप से ऐपण में गेरू और चावल को भिगोकर पीसे गये घोल (पेस्ट) का प्रयोग होता है। इसमें महिला अपने दाहिने हाथ की अंतिम तीन उंगलियों से विभिन्न प्रकार की ज्योमैट्रिक पेटर्न जिसमे स्वास्तिक, शंख,सूर्य, चंद्रमा, पुष्प देवी लक्ष्मी, गणेश आदि की आकृतियां बनाती है । 

ऐपण बनाने की आधुनिक विधि

आज के समय में महिलाएँ और लड़कियाँ गेरू और चावल के पेस्ट की जगह पर रंग – बिरंगे पेंट जैसे लाल, सफेद रंगों का प्रयोग करते हैं वे तरह-तरह के आकृतियाँ बनाती हैं।

ऐंपण कला का महत्व

उत्तराखंड के कुमाऊं की ये अनमोल कला को अभी तक संभालने और अपनी पीढ़ियों को आगे से आगे पहुंचाने का  श्रेय किसी को जाता है तो वो है वहाँ की महिलाएं जो अपनी बहू, बेटियों को और बच्चों को अब ये पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाते जा रही हैं। इसका बहुत ही अधिक महत्व है क्योंकि धीरे-धीरे हमारे लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं और इन को संभालना अब आज की नई पीढ़ी के लिए बहुत ही ज़रूरी है चाहे वो शहर में रह रहे हो या गाॅंव में।

खासकर जब बात आती है दिवाली के दिनों की तो अच्छा मौका होता है जब सब मिलकर कुछ ना कुछ अपने घर के लिए कर सकते हैं अपने मंदिर को सजा सकते हैं इस ऐपण के द्वारा और अपने समय का सदुपयोग के साथ-साथ इस विरासत को ख़त्म होने से बचा सकते हैं।

(आशा करती हूॅं आपको उत्तराखंड के इस लोक कला के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा)

जय देवभूमि ! जय उत्तराखंड 🙏

लेखिका: सीता वोरा

पांवटा साहिब,  हिमाचल प्रदेश

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