कविता – ख़्वाबों के शहर में

ख्वाबों का शहर

मेरे ख्वाबों का शहर मिल गया है आज मुझे,

यहाॅं की हवाओं में ग़जब सी मस्ती है,

तेरे शहर की फिजाओं में ख़ुशी दिखती है,

हर जवां लबों पर फूलों सी हॅंसी दिखती है,

हर गली रौशन है चाहत के चिरागों की तरह,

यहाॅं हर मोड़ पर हर ग़म की दवा मिलती है,

मेरे ख़्वाबों के शहर में हर छत में है भरोसा कायम,

यहाॅं हर मकान में यौवन की महक दिखती है,

हर हसीन दिल में मुहब्बत की चमक दिखती है। 

घर घर नहीं रहे

तब से वो घर-घर नहीं रहें,

जब से पुराने शजर नहीं रहें,

जब साया ही न रहा दुआओं का,

अब तो एक साथ बसर भी न रहें,

हमने पुरानी बस्तियों को छोड़कर,

अपनी ख़ुशियों के घर बना लिए,

पुरानी पीढ़ियों को छोड़कर, 

नये अपने ताल्लुकात बढ़ा लिए,

जो अपनी जड़ से दूर हो गए,

फिर आज वो वृक्ष भी कहाॅं रहें,

विश्वास के स्वर कभी वहाॅं गूंजते थे सम्मिलित,

रौशनी भी प्यार की सब के दिलों में प्रज्वलित,

आज दीवारें देखो ईट की ऑंसुओ सी झर रही,

रौनके मकान की बस आखिरी साॅंस भर रही,

घर बेचारा क्या करें जब न हम रहें न तुम रहें,

अब वो घर  घर नहीं रहें,

जब से पुराने शजर नहीं रहें…। 

 शजर – (वृक्ष, दरख़्त)

तुम्हारी खुशी से बढ़कर

तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर माॅंगी दुआ न रब से,

हम अब भी मुस्कुराये ख्यालों में तुम्ही आये,

ये रौनक तुम्ही से मेरी, तुम खुश्बू – ए – बदन हो,

लब से जिन्हें लगाया उन फूलों में तुम्ही आये,

मुहब्बत का दोस्ताना बस सलामत रहें हमारा,

इबादत करूँ मैं जब भी मुरादों में तुम्ही आये,

तुम मेरे हमनशीं हो तुम मेरे चाँद महाजबीं हो,

हरदम मेरी क़िस्मत में सितारों से तुम्हीं आये,

तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर माॅंगी दुआ न रब से,

हम अब भी मुस्कुराये ख्यालों में तुम्हीं आये..! 

Usha Patel

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग