प्रेम विरह कविता हिंदी

©Alfaj_E_Chand (Moon)

वो ग़ुलाब जो दिया था उसने हमें

वो ग़ुलाब जो दिया था उसने हमें, 

हमारी पहली मुलाक़ात पर, 

जिसे छिपाया था मैनें सबकी निगाहों से, 

अपने डायरी के पन्नों के बीच, 

 सूख गये हैं अब वो, 

उन पन्नों के बीच दबे – दबे, 

पर अब भी आती है उससे वही महक, 

जो महक समाये हुए थी उसमें उस वक़्त, 

जब वो छिपाये हुए थी अपने अंदर, 

भरकर मुहब्बत के रंगों के साथ,

अपने सुंदरता अलौकिकता का सारा खज़ाना, 

दिलाती है जो अब भी हमें, 

मीठी यादें उन लम्हों की, 

जिन लम्हों की थी बनी वो साक्षी, 

और बिखेर देती हैं मेरे चेहरे पर, 

एक बार फिर वहीं मुस्कान, 

जो मुस्कान मेरे चेहरे पर आयी थी, 

पाकर उसे उस वक्त,

और कर देती है एक बार फिर, 

जोरों से हृदय स्पंदित मेरा उसकी याद में,

और पाती हूँ मैं ख़ुद को रंगी हुई एक बार पुन:,

उसकी मुहब्बत में, 

ठीक वैसे ही जैसे “राधा” “श्रीकृष्ण ” के प्रेम में, 

और “श्रीकृष्ण” “राधा ” के प्रेम में,

जो सदैव पास होकर भी दूर रहें, 

और दूर होकर भी सदैव पास रहें, 

एक – दूसरे के, 

ठीक वैसे ही मैं और वो है॥ 

जो जा रहें हैं छोड़कर

जो जा रहें हैं छोड़कर, जाने दो  उन्हें; रोको नहीं,

ज़बरदस्ती अपनी मर्ज़ी उनपर तुम कभी थोपो नहीं।। 

 हाँ, बार – बार तेरे कहने से हो सके शायद रूक तो जायेंगे,

पर पहले की भांति….

शायद फिर से वो दिल से रिश्ता संग तेरे निभा ना पायेंगे।। 

ऐसी स्थिति में….

शायद ना तो तुम पूरी तरह से ख़ुश रह पाओगे,

और ना ही वो पूरी तरह से कभी ख़ुश रह पाएंगे।।

दोनों ही…. 

अवसादों और निस्पंद ख़ामोशियों के साये में, 

अपना – अपना कीमती वक़्त बितायेगे।। 

खुशियाँ भी देगी जो दस्तक….

ऐसे उधेड़बुन वाले रिश्तों के दरवाज़े पर;

संपूर्णता के लिबास में लिपटी ना होगी कभी।। 

बदलते वक़्त, बदलते हालात भी,

पहले जैसे उन रिश्तों को मजबूती दे ना पायेगें,

अपने साध्वस को….

किसी -न- किसी कसक के साये तले,

एक-दूजे की निगाहों से हर वक़्त ही छिपाते नजर आयेंगे।। 

जो जा रहें हैं छोड़कर, जाने दो  उन्हें रोको नहीं,

ज़बरदस्ती अपनी मर्ज़ीट उनपर तुम कभी थोपो नहीं।। 

कह दिया अलविदा

कह दिया अलविदा हमेशा के लिए, 

उसका जीवनसाथी, 

अपने भरन -पोषण के लिए नहीं गवारा समझा, 

किसी और पर निर्भर होना, 

चुनी राह अपनी बनने आत्मनिर्भर,

किया नही उसने समझौता परिस्थितियों से, 

अपने स्वाभिमान के खातिर, 

लड़ती रही डटकर लगातार, 

खटकती है वो, 

इसलिए कुछ लोगों की आँखों में,

बस उनके अंतस में बैठे इस डर से, 

कहीं वो निकल जाये ना आगे, 

इस पुरुषप्रधान समाज में,

और बना ना ले कहीं,

 वो अपनी एक अमिट सम्मानीय पहचान, 

देने ना लगे सब उसकी मिसालें, 

करने ना लगे समस्त स्त्री जाति अनुकरण उसका,

आ ना जाये कहीं जिससे पुरुष सत्ता खतरे में,

करते हैं संबोधित जिस कारण ही वही लोग, 

उन कलुषित शब्दों से, 

जो व्याख्या करती नहीं उसके सही व्यक्तित्व को, 

पर उसे पड़ता नहीं फर्क उन दूषित शब्दों से, 

सताता है भय,

क्योंकि डरती नहीं वो,

दुनियावालों की झूठी नापाक चोचलेबाजी से,

इसलिए कि जानती है वो, 

तर्क की कसौटियों पर कसे जायेंगे,

जब विचार उसके,

तब वो उतरेगी खरी शत – प्रतिशत, 

फिर भी वो चाहती नहीं बहस में पड़ना,

उनलोगों के साथ, 

क्योंकि जानती है वो, 

जगाया उसे ही जा सकता है जो सोया हुआ है, 

उसे नहीं जो सोने का नाटक कर हो ||

— ©Alfaj_E_Chand (Mood) ✍✍

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“यूपी में का बा?” गीत नेहा सिंह राठौर

आपकी सोच में ताकत व चमक होनी चाहिए