माँ बेटी के रिश्ते को एक मज़बूत कड़ी में बाॅंधती है कुछ ख़ास बातें

माँ बेटी का रिश्ता

माँ बेटी के रिश्ते जैसा ख़ूबसूरत और मज़बूत कोई रिश्ता नहीं,

मैं भी एक माँ हूँ और अपने तजुर्बे को बांटना चाह रही हूँ।

बेटियाॅं सौभाग्य से मिलती हैं, वो सौम्यता, शालीनता और चंचलता से परिपूर्ण होती है। हर माॅं अपनी बेटी में अपने अक्स को देखती है और भरसक कोशिश करती है जो खुशियाॅं उसे नहीं मिली वह अपनी बेटी को दे और जो गलती वो कर चुकी है अपनी बेटी को ना करने दे। इन्हीं सब कोशिशों में हम कभी-कभी बहुत सख़्त तो कभी बहुत नर्म हो जाते हैं। और इन सब की वजह से माॅं बेटी का रिश्ता एक मोड़ पर आकर विचलित हो जाता है तो आइए कुछ बातों पर ध्यान देते हैं –

एक माँ का व्यवहार अपनी बेटी के साथ दोस्त व सहेली की तरह होना चाहिए, इसके लिए जब बेटी छोटी हो तभी से उससे ढेर सारी बातें करते रहें, उसकी रूचि और पसंद पर उसका मनोबल बढ़ानी चाहिए।

बेटी से अगर कोई गलती हो जाए तो उसका कारण जाने और अगर वह बताने में असमर्थ हो तो उसे थोड़ा वक़्त दें। लेकिन प्यार और दुलार से उसका कारण एक माॅं ही बुलवा सकती है जो कि ज़रूर उससे बुलवाएं।

नखरे और शरारतो की पूरी दुनिया होती है बेटी, माॅं को भी समय-समय पर बच्चा बनकर उसके साथ खेलना पड़ता है तब जाकर बेटियाॅं माॅं के आँचल को कभी नहीं छोड़ती, उसे अपना घर बना लेती है।

एक उम्र के बाद भी दूरी ना बने इसके लिए उसे अपने हर छोटी और बड़ी समस्याओं और खुशियों में शामिल करें और कुछ जिम्मेदारियों को भी सौंपे, जिससे माॅं बेटी के बीच सलाह मशवरा होती रहें और बेटी की सलाह को अहमियत दे।

बेटी का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह हो या कोई स्पेशल ऑकेजन हो, उस दिन को बेटी के मूड के अनुसार स्पेशल बनाएं।

सबसे ज़रूरी बात शायद ही कोई माँ भूलती होगी, बेटी को बार-बार गले लगाना और उसके माथे पर चुंबन करना, ऐसा करने से बेटी की तोतली बोली हर बार निकलेगी चाहे वह कितनी भी बड़ी हो जाए।

दुनिया के हर रिश्ते से परे है माँ बेटी का रिश्ता, इस रिश्ते को जितना ही प्यार और विश्वास से संवारते हैं उतना ही मिठास ज़िंदगी में महसूस होता है। एक माँ की सबसे अच्छी सहेली होती है बेटी, अपना हर दुःख, अपनी हर तकलीफ़ को, अपनी खुशियों को वह खुले दिल से अपनी बेटी के सामने रखना चाहती है और ऐसा करना भी चाहिए, क्योंकि जब हम ऐसा करेंगे तो ही हमारी बेटी भी हमारे उतने ही क़रीब आएगी और अपने हर बात को कहने में सहज महसूस करेगी।

मैंने देखा है कई बार एक उम्र के बाद बेटी माँ से धीरे-धीरे दूर होते जाती है, वह अपनी दुनिया में जीने लगती है, मगर इस दूरी को ख़त्म करने का काम भी एक माँ कर सकती है।

माँ जितनी सरलता से अपनी बेटी की हरकतों को, बातों को, उसके ना को, उसके हां को, उसकी हँसी को, उसके आँसू को, उसके गुस्से को समझ सकती है, दुनिया में और कोई भी नहीं है जिसमें इतनी बड़ी दिव्य शक्ति होती है।

Supriya Shaw

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