आपकी सोच में ताकत व चमक होनी चाहिए।

यह जरूरी तो नहीं की मैं Branded कपड़े, जूते, घड़ी पहनकर सभ्य, अमीर और बुद्धिमान दिखूँ ।

जैसे जैसे उम्र का तकाजा होता गया दुनिया की समझ भी आने लगी कि अगर मैं Rs. 200 की घड़ी पहनूँ या Rs. 20000 की समय दोनों एक ही जैसा बताएंगी।

Rs. 5000 की ब्रांडेड जूते पहनु या Rs. 500 की पहनना पैर में ही हैं।

मेरा पर्स (वॉलेट) Rs. 300 का हो या Rs. 3000 का समान दोनों में रखा जा सकता है।

आगे बढ़ते उम्र के साथ आखिर में मुझे ये भी पता चला की यदि मैं बिजनेस क्लास मे यात्रा करूं या इकनोमी क्लास में, अपनी मंजिल पर नियत समय पर ही पहुँचूँगा।

इसीलिए आप अपने बच्चों को ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित ना करके उन्हे ये सिखाए की वे खुश कैसे रह सकते है, और जब वो बड़े हो तो वे चीजों के महत्व को समझे – उसकी कीमत को नहीं।

Branded चीजों का काम अमीर लोगों की जेब से पैसे निकालना होता है, जिससे गरीब व मध्यम वर्ग के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं।

क्या यह आवश्यक है कि मैं रोज Mac’d या KFC में ही खाऊ, ताकि लोग मुझे कंजूस ना समझे?

क्या यह आवश्यक है कि रोजाना अपने दोस्तों के साथ बाहर जाऊ, कैफै में बैठू, Restaurant में खाऊँ ताकि लोग मुझे रईस परिवार का समझे?

क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Addidas, Armani, Nike का ही पहनु ताकि मैं ब्रांडेड दिखूँ।

नहीं दोस्तों…

मेरे कपड़े आम दुकान से खरीदे होते हैं।
दोस्तों के साथ किसी ढाबे पर बैठ जाता हूँ।

भूख लगे तो किसी ठेले से लेकर खा लेता हूँ, खाने के अपमान करना अच्छी बात नहीं।

अपनी सीधी सादी भाषा बोलता हूँ।

चाहू तो वह सब कर सकता हु जो उपर लिखा है।

लेकिन

मैंने ऐसे भी परिवार देखे हैं जो एक Branded जूतों को जोड़ी की कीमत में अपना एक हफ्ता का राशन ले सकते हैं।

मैंने ऐसे परिवार भी देखें हैं जो एक Mac’d के बर्गर की कीमत मे पूरे घर का खाना बना सकते हैं।

यहाँ मैंने बस यही देखा हैं की पैसा ही सबकुछ नहीं होता, जो लोग किसी की बाहरी हालत देखकर उसकी कीमत लगाते हैं, मैं उनसे यही कहूँगा वो अपना इलाज तुरंत करवाएं।

मानव मूल की असली कीमत उसकी नैतिकता, व्यवहार, सहानुभूति, भाईचारा और मेलजोल का तरीका है न की उसकी मौजूदा शल्क, सूरत।

एक बार सूर्यास्त के समय सूर्य ने सबसे पुछा की मेरी अनुपस्थिति में मेरी जगह कौन कार्य करेगा ?

समस्त विश्व में सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था, तभी एक कोने से आवाज आई।

दिये ने कहा – “मैं हूँ ना” मैं अपना पूरा प्रयास करूंगी।

निष्कर्ष : आपकी सोच में ताकत व चमक होनी चाहिए। छोटा-बड़ा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, आपकी सोंच बड़ी होनी चाहिए।

मन के अंदर दीप जलाए, सदा मुस्कराते रहें और लोगों में खुशिया बिखेरते रहें।

By – Vikash Kumar
Digital Marketing Stretegist
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