नारी के रूप अनेक

नारी के रूप अनेक

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काली की भयंकर कोमल छवि प्रिया हूँ मैं, 

अत्यंत क्रोध, रोष का समावेश है मुझ में। 

ग्लानि, दुःख, प्रेम से अनभिज्ञ रहती हूँ मैं, 

झलकता है अद्धभुत-सा अहंकार मुझ में। 

शक्ति रूपिणी तेज़ धार वाली कुठार हूँ मैं,

सर्वोत्तम क्षमताओं का समावेश है मुझ में। 

प्रतीत होती भले निरीह, लाचार, अबला हूँ मैं, 

पर राह बनाती हुई स्वयं की सबला है मुझ में।

कुदरत का दिया इस जग में मौजूद श्राप हूँ मैं,

ईश्वर प्रदत्त अनोखा हुनर विराजमान है मुझ में। 

बन जाती अकसर सबकी हँसी का पात्र हूँ मैं, 

समाज के व्यंग्यातमकता का निवास है मुझ में। 

कई जख्मों से लबरेज़ संसार की चिड़िया हूँ मैं,

इस जग को कमतर-सी दिखती प्रिया है मुझ में।

प्रेरणादायी एक लड़की

प्रेरणादायी एक लड़की 

मस्त-मगन सी अपने धुन की पक्की , 

बड़ी तो हो गई पर है दिल की बच्ची, 

सोच ठहर पाती नहीं है कहीं उसकी, 

जाना कहाँ है कोई राह नहीं दिखती,

सपने अजीबो-गरीब पलको में है रखती, 

क्या ऐसी नहीं है दुनिया में कोई हस्ती, 

जो पूरे कर दे उसके हर अरमान सस्ती, 

हर रिश्ता अपने बचपने में है छोड़ती, 

जो जी आता है उसके वही सोचती, 

बड़ी-बड़ी प्रेरणादायी बातें है सुनाती, 

ख़ुद को हमेशा सबसे कमतर आंकती, 

जब बारी आ जाएं न कभी उसकी, 

ज़िन्दगी से खूबसूरत मौत है लगती, 

बड़ी गहराई से ताने-बाने है समझती, 

देखकर लगती है गूंगी सी एक लड़की, 

विचारों में उसके है दिव्य कोई शक्ति, 

सहने की क्षमता नहीं रखता कोई हस्ती, 

कुछ इसी तरह मानी जाती है वो विपत्ति,

समाज के अजीब तानों-बानों सी है रिक्ति,

हाँ! वो कहलाई जाती है अभागी लड़की। ।

अनसुलझे किस्सों की रही कई पहेलियाँ

हम अपने विचार सभी से साझा करते रह ही गए। 

वो आए एक बार जिंदगी में हमारी और रह ही गए।

मन के सारे राज़ों को हमने अपने लिखकर कैद किया,

फिर भी हमारे कुछ राज़ थे जो अनकहे से रह ही गए।

सबने एहसासों को हमारे समझा अपना समझकर, 

पर फिर भी वे केवल वाह के मोहताज़ रह ही गए।

अनकहे अनसुलझे किस्सों की रही कई पहेलियाँ, 

जो जुड़े थे जिससे वो भी नासमझ बनते रह ही गए।

खेल गई एक मनमोहक दांव ये जिंदगी भी अपनी, 

और फिर हम उनके रंग में रंगकर रंगे रह ही गए।

कितने ही गहरे घाव वक़्त हर पल हमें देता गया, 

एक हम थे नारी की हमेशा सँभलकर रह ही गए।

लेखिका:  प्रिया कुमारी 

फरीदाबाद

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