भारतीय संस्कृति भी आज वैलेंटाइन सप्ताह के रंग में पूरी तरह
रंग चुकी है।
नवयुवक और नव युवतियाॅं अब खुलकर मोहब्बत का इज़हार करते हैं। जबकि भारतीय संस्कृति में यह दिन बहुत महत्वपूर्व माना जाता है और वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
मगर आज हम अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगते जा रहें है।
मोहब्बत का इज़हार करना गलत नहीं है, मगर अपनी सभ्यता के दायरे में रहकर ही वो मुकाम पाती है।
भारतीय संस्कृति में प्यार को बड़ा महत्व दिया गया है।
हमारी संस्कृति प्रेम के मार्ग पर चलकर ही फलीभूत हुई है।
प्यार के बिना हमारा जीवन अधूरा सा है। यहाँ पर राधा कृष्ण का प्यार, राम सीता, जोधा अकबर, मुमताज शाहज़ाह जैसे अनेक नाम प्यार की धरोहर है।
प्यार से हर रंग महकता है। प्यार दिलों का अनोखा बंधन है।
इसमें डुबकर गुलशन भी महक जाते है।
पर अब हमारे समाज में इसे जाति में विभाजित कर दिया है।
इससे आने वाली पीढ़ियाँ प्रभावित हो रही है और ये आने वाले कल के लिए अच्छा नहीं है।
फरवरी को हम प्यार का महिना के रूप में मनाते है। हर दिन कुछ ना कुछ डे मानते है जैसे
❣ 7 Rose day
❣ 8 propose day
❣ 9 chocolate day
❣ 10 Teddy day
❣ 11 promise day
❣ 12 Hug day
❣ 13 kiss day
❣ 14 Valentine’s day
इस दिन हर कोई दिल खोलकर अपने प्यार का इज़हार करता है, चाहे कोई भी हो।
वैसे सनातन इतिहास की बात करें तो वेदों, शास्त्रों के पन्ने पढ़ने के बाद भी वैलेंटाइन डे, मातृ- पितृ दिवस, फादर्स दे, mother’s day, चॉकलेट डे, टेड्डी दे, रोज डे, किस डे, हग डे की कोई जानकारी नहीं मिलती।
आज वैलेंटाइन डे ( Valentine’s day) बना मार्केट…..
वैलेंटाइन डे अब एक इंटरनेशनल मार्केट का रूप ले चुका है।
होटल, पब, रेस्टोरेंट, मूवी थिएटर, कैफे, शॉपिंग मॉल सब इस दिन का बिज़नेस का रूप दे चुके है।
हैरत की बात यह है कि वैलेंटाइन डे के नाम पर अब प्यार का इजहार खुलेआम होने लगा है।
लोगों को खुद अपनी ज़िंदगी जीने दो, जो जैसे जीना चाहता है उसे निरापद जीने दो।
लेखिका : उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग