कविता – तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो

प्यार की कोई सीमा नहीं

कभी बेरंग न हो सके , तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो, 

दोस्तों को ही सिर्फ क्या, तुम अपने दुश्मनों को अपना कहो। 

नफरत की भावनाएँ जो उनके दिलों में तुम्हारे लिए पनपती है, 

देखना एक दिन वो भी बेइंतहा मुहब्बत में बदल जायेगी। 

जीवन में तुम्हारे हर वक़्त सिर्फ खुशियों की ही सौगातें आयेगी। 

चहुँ ओर तुम्हारे उदासी के जगह रौनक ही रौनक छा जायेगी। 

वो हर लम्हा, हर पल यादगार और सुनहरा पल  कहलायेगा, 

जब तुम हर परिस्थितियों में सबका साथ उसका निभायेगा। 

कभी बेरंग न हो सके , तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो, 

दोस्तों को ही सिर्फ क्या, तुम अपने दुश्मनों को अपना कहो ।

कविता – माँ का वात्सल्य

कविता – प्यार की कोई सीमा नहीं

प्यार की कोई सीमा नहीं है, 

यह अनंत आकाश की तरह है

जिसका कोई ओर- छोर नहीं है। 

यह बहता पवन की तरह है,

जिसे किसी भी तरह के बंधन में

कभी नहीं बांधा जा सकता है। 

यह निर्मल जल की तरह है, 

जो स्वयं में समाहित करके

सबके अस्तित्व को हमेशा

के लिए ही स्वच्छ बना देती है। 

यह धधकती अग्नि की तरह है, 

जो प्राणियों के अंत:करण में 

छिपी हुयी समस्त बुराईयों का

नाश कर अच्छाई का प्रदीप्त 

प्रकाश प्रज्वलित करती है। 

यह दोमट मिट्टी की तरह है, 

जो किसी भी रिश्तों में आयी 

छोटी सी दरार को भी 

विश्वास के साथ भर देती है।

प्यार की कोई सीमा नहीं है।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

बनावटी रिश्तों की सच्चाई

3 thoughts on “कविता – तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो”

    1. शर्मा विनोद

      वाह, बहुत खूब अति सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

  1. सहृदय आभार आपका 😊😊
    इसी तरह हमें आगे भी प्रोत्साहित करते रहे ।

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