बसंत तुम संग,
आयी है छटा बिखेरे,
मधुरस सरसों के फूल में,
फिर अमृत बोली बोल रही,
कोयलिया बगिया के आड़ से,
एक डाल पर बैठी गौरैया के,
कानों में कुछ कहना है,
ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,
तुम संग गगन में वासंती होना है,
पिघल रही कसक तन की,
आयी है मौसम मनभावन,
राग उत्सव की गा रहें,
फिर चला है चाँद घर ऑंगन,
देखो उठ रही मधुमाती सुगंध,
अमवा के मोजर से,
फिर मन प्रीत जगे है,
रत जगे महुआ के डाल से,
उमड़ घुमड़ को निकल पड़े है,
युगल गंगा की घाट पर,
फिर देखो सज रहा बसंत,
नव अंकुरित फूलों की चाह पर,
ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,
तुम संग गगन में वासंती होना है।।
कविता – किताबों की दुनिया
कुछ लोगों को संभाल कर रखो किताबों की तरह,
जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको,
जो अंधेरी रात में एक टिमटिमाते दीपक की तरह,
फिर रोशन कर सकें तुम्हारे सब ओझल रास्तों को,
तेरे उदास दिल के सामने खोल दें पेज मुहब्बत के,
जो तुम्हारे अंतर्मन में दो लफ्ज़ प्यार के घोल दें,
तुम्हारी ख़ामोशियों की जो नई आवाज़ बन सके,
तुम्हारी तन्हाइयों के रुदन में नया साज बन सके,
जो तुम्हारे दुःख में घुल सके, एक नई प्रेरणा की तरह,
जिससे संबंध हो जैसे, शरीर और आत्मा की तरह,
कुछ लोगों को संभालकर रखो किताबों की तरह,
जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको।
लेखिका : उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग