कविता – प्रेम विरह कविता

इश्क़ के नाजुक डोर से

इश्क़ के नाजुक डोर से

बाॅंध लो तुम हमें भी आज अपने इश्क़ के नाजुक डोट से, 

खुशियाँ हम भी भरेंगे, तेरे जीवन के दामन में अपनी ओर से।

तेरे लबों पर लाना है हमें भी एक प्यारी – सी मुस्कुराहट,

 तुम तक पहुॅंचने ना देंगे, हम कभी कोई ग़म की आहट।

तेरे परेशां दिल को पहुँचाना है अब हमें भी राहत, 

जन्मों- जन्मों तक करें हम, बस एक तेरी ही चाहत।

बाॅंध लो तुम हमें भी आज अपने इश्क़ के नाजुक डोर से, 

खुशियाँ हम भी भरेंगे, तेरे जीवन के दामन में अपनी ओर से।

Best heart touching love shayari

भारतीय संस्कृति और वैलेंटाइन सप्ताह

गुस्सा भी नुकसानदायक होता है

एक सपना जो हर किसी भारतीय के आँख में पल रहा है

मेरा ये ज़ालिम दिल चाँद को चूमने की ख्वाहिश रखता है

मेरा ये जालिम दिल हर पल बस चाँद को चूमने की ख्वाहिश रखता है, 

उसके इश्क़ की खुशबू में अपने आपको खोने की आजमाईश रखता है, 

उसकी शीतलता के आगोश में कुछ हसीन सपने बुनने की फरमाइश रखता है,

पता है मुझे, इश्क -ए महताब शायद नहीं हमारी क़िस्मत में,

फिर भी बन चकोर एकटक उसे और उसकी खुबसूरती को हर वक़्त निहारना चाहता है, 

रजनीगंधा – सी बनकर उसकी सुनहरी यादों में हर पल बस महकना चाहता है।

संवरती हूॅं

संवरती हूॅं

ओ मेरे रांझणा!

तेरे उदास से मायूस ऑंखों में असीम खुशियाँ झलकाने के लिए, 

तेरे सुनहरे यादों की दरिया में सराबोर ही नित्य – प्रति संवरती हूँ मैं,

तेरे गहरे अथाह प्रेम की मनोरम महक से हर पल ही निखरती हूँ  मैं,

यूँ तो काजल और कुमकुम अक्सर ही मेरी ख़ूबसूरती को और भी बढ़ा देती है ,

पर तुम्हारी मौजूदगी मेरी उस ख़ूबसूरती में भी हर बार चार चाँद लगा देती है।

तेरा यूॅं शर्माना

मुझे देखकर हर दफा दाँत तले अपनी उंगली दबा तेरा ये शरमाना, 

दुपट्टे के ओट तले अपना चेहरा, चाहत भटी मेरी निगाहों से छिपाना, 

अपनी प्यारी-सी मुस्कान से हमेशा ही हमें बरबस अपनी ओर लुभाना, 

अपनी खुशबू बिखेरते हुए मेरे करीब से झटपट तेरा भाग जाना, 

उफ्फ तेरी ये अदा मेरे मासूम दिल पर छुरी चला जाती है,

है तुझे भी इश्क़ हमसे, इसका अहसास हमें दिला जाती है।।

ये दिल

ये दिल

ये दिल इतना बेदर्द क्यों है? 

जो हर ग़म को ख़ुद में छिपाता है,

हर दर्द को सीने में दफनाता है, 

इतना क्यों ख़ुद को तड़पाता है? 

चाह कर भी कुछ ना किसी को बताता है, 

आखिर ये दिल इतना बेदर्द क्यों है? 

लोगों का दामन जब इसे अकेला छोड़ जाता है, 

तन्हाई भी तब इसे अंदर तक तोड़ जाता है। 

उस पर ऑंसू इतना बहाता है, 

दर्द को छिपाए छिपा नहीं पाता है, 

ये हद से ज्यादा जब घबराता है, 

मन भी कुछ समझ नहीं पाता है। 

जाने क्या पता इसकी क्या मजबूरी है? 

किस बात के लिए खुद की मंजूरी है? 

जो हर राज़ को सभी नजरों से बचाता है, 

जो हर दर्द को सीने में दबाता है। 

आखिर दिल इतना बेदर्द क्यों है?

तेरे प्रेम में बस एक तेरे ही प्रेम में

मेरी नजरों के सामने यूँ ही बैठे रहो तुम बिल्कुल गुपचुप होकर, 

 देखता रहूँ बस तुझे एकटक मैं अपनी सुध – बुध खोकर । 

होश में लाने भी ना पाये हमें दुनिया की कोई भी फिजूल बातें, 

तेरी ही बस एक तेरी ही पनाहों में गुजर जायें मेरी हर एक राते । 

तेरे प्रेम में बस एक तेरे ही प्रेम में मैं मस्त मलंग बन जाऊँ, 

तू मेरी हीर और मैं  ; मैं  मैं तेरा रांझा बन जाऊँ । 

मेरी नजरों के सामने यूँ ही बैठे रहो तुम बिल्कुल गुपचुप होकर, 

 देखता रहूँ बस तुझे एकटक मैं अपनी सुध – बुध खोकर ।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार