कविता – माँ का वात्सल्य

माँ का वात्सल्य

बनना  पड़ता है एक माँ को भी कभी – कभी पत्थरदिल,

ताकि अपने संतानों में मजबूती के साथ सत्संस्कार  रूपी पौधे को रोप दे, 

भावी जीवन के सुनहरे सफ़र के लिए कुछ  कर्तव्य , आवश्यक कार्य सिखा सके,

कोई कभी भी उसके संतानों के आत्म सम्मान को ठेस ना पहुँचा सके , 

उसे मिली है जो परवरिश उस पर कोई कभी भी उंगली ना उठा सके,

एक माँ के लिए यह कार्य आसान नहीं कभी होता है,

अपने संतान को तकलीफ़ में देख उसका दिल बहुत रोता है।

कविता – नारी के रूप अनेक

कविता- वो एक मिनट

याद भी नहीं होगा उसे तो, 

वो एक मिनट जब गोद में, 

पहली बार वो मेरी आया था।

सारी दुनिया को सिमटाकर वो, 

मेरी सम्पूर्ण ज़िंदगी की, 

आस कहलाया था।

जिन नन्हीं-नन्हीं, 

उंगलियों को थाम, 

मैंने मातृत्व का, 

सुखद एहसास पाया था।

खुश थी देखकर, 

जब समय के साथ, 

मैंने उसे दृढ़ता से, 

चलता हुआ पाया था।

आज वही बेटा, 

मेरा हाथ थाम, 

वृद्धाश्रम मुझे, 

सदा के लिए,

छोड़ने आया था।

लेखिका:  प्रिया कुमारी 

फरीदाबाद

कविता — देखा है मैने 

देखा है मैने कुछ लोगों को,

अजनबियों की खुशी के लिए ,

उनके सुख और भलाई के लिए, 

अपने अस्तित्व को ही दाँव पर लगाते।

बिल्कुल मोमबत्ती की ही तरह,

जो स्वयं की फिक्र किये बिना, 

अपने खून का एक – एक कतरा,

निस्वार्थ भाव से  खर्च कर देते हैं।

गम के काले घने अंधकार को मिटाने के लिए, 

उनके जीवन में नव – आशा से भरी,

 बसंत – बहार लाने के लिए,

 हमेशा – हमेशा के लिए  छोड़ देते हैं,

उनके सुनहरे यादों में मौजूदगी अपनी,

अच्छाई और सच्चाई की।

कविता — हर क़दम पे मुश्किल

जीवन के हर एक कदम पे मुश्किल तो आकर खड़ी हो ही जाती है, 

लेकिन रहता संग जब अपनों का साथ, तब जीत बड़ी हो जाती है। 

अपनों का साथ हमेशा ही अंतर्मन को बहुत सूकून दे जाता है, 

हृदय की गहराइयों में उठते भय रुपी पीर को हर ले जाता है। 

स्वयं की शक्तियों पर किये गये विश्वास का दायरा बढ़ जाता है, 

निराशा के अंधेरे में उम्मीद का प्रकाश अपनी परवान चढ़ जाता है । 

अपने बुलंद हौसले के संग निडर हो सफर में आगे तभी बढ़ पाता हैं,

करके अथक मेहनत आखिर में वही सच्ची कामयाबी को पाता हैं।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

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