कविता – पिता का दायित्व

परिवार रुपी टहनियों का, भरण पोषण करते जड़ रूपी पिता, 

इनके बिना ना हरा-भरा लगता है घर संसार हमारा। 

हर दायित्व निभाते रहते, शिकन ना चेहरे पर आने देते,

हमारी खुशियों की खातिर, अपना सर्वस्व कुर्बान है करते।

प्यार, त्याग और समर्पण से बना व्यक्तित्व है इनका , 

सबके मन में पिता का दर्ज़ा भगवान् से ना कम है। 

छत्रछाया में इनके गुजरता हमारा जीवन सदा सुरक्षित, 

हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन कर, मंज़िल तक पहुंचाते हैं पिता।

पिता एक मार्गदर्शक

*पिता* अपने आप में गंभीर और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उभर कर आता है,

प्यार, सम्मान और आदर से भावविभोर हृदय हो जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर और चेहरे पर मुस्कान दिखता है,

दिन-रात हो, मौसम कोई हो, परिवार की ख़ातिर काम पर जाना होता है।

सबके दुख को सुख में बदलना इनको बखूबी आता है,

अपनी दर्द सीने में दबा कर ख़ुश रहना भी आता है।

पिता की छत्रछाया में जीवन जितना बीत जाता है,

वहीं किताब बनकर पूरा जीवन मार्गदर्शक बन जाता है।।

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