Supriya Shaw

दीपावली पर कविता

दीपक

|| शुभ दीपावली || 

दीपावली हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है। 

अँधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व है। 

दीपावली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। 

दीपावली खुशियों और रोशनी का पर्व है। 

दीपावली कईं त्यौहारों का समूह है। 

जिनमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज है। 

धनतेरस के दिन बर्तन खरीदा जाता है। 

तुलसी या घर के द्वार पर दीप जलाया जाता है। 

नरक चतुर्दशी के दिन यम का दीप जलाते है। 

गोवर्धन पूजा के दिन गाय- बैलों को सजाते है। 

भाई दूज पर बहन भाई को ,तिलक लगाकर मंगल कामना करती है।

दीपावली के दिन श्री राम के स्वागत में घी के दीप जलाते है। 

जगमग करते दीपक लगते कितने प्यारे है। 

मानो आज उतर आये, अंबर से धरती पर तारे है। 

दीप जलाएं हम वहाँ, जिस घर है अंधियार। 

ये सच कहते हम, हो जग में उजियार। 

खुशहाली का पर्व दीपावली, कर लो रूप निखार। 

रूप चाँदनी सा लगे, करता जब श्रुंगार। 

स्वच्छ बने वातावरण, हम सब करे प्रयास। 

हर इक मन से तम मिटे, हो हर ओर उजास। 

|| रंगोली ||

तरह तरह के रंगो से सजी, 

      बनी है रंगोली। 

दीपावली का त्यौहार ही कहाँ, 

      बिन रंगोली। 

रंग भरी अल्पना, घर आँगन सजी रंगोली। 

दीपों से सज धज, देखो जगमगायी रंगोली। 

रंगो की दुनिया कहूँ या कहूँ रंगोली। 

कितनी अजीब है ना इंद्रधनुषी रंगो में, 

    दिखती ये रंगोली। 

द्वार सजाती हर उत्सव पर, 

      प्यारी रंगोली। 

मन भावन पुनीत व पावन, 

     सजी रंगोली। 

अलग अलग रंगो के समूह है रंगोली। 

नेत्रों को देता खुशी, मन को भर देता

    प्रसन्न रंगोली। 

इसलिए घर के आँगन को रंगोली से सजा लेना। 

घर के द्वार को सजा देना बनाकर रंगोली। 

कविता – करवा चौथ


हिंदी कविता – हम दिल से हारे

सफेद बालों को काला करने के घरेलू उपाय

hair problem
Image by pixabay

सफेद बाल हो जाएंगे पूरी तरह काले अगर हम इन पत्तों का इस्तेमाल सही तरीके से करें,

महंगें प्रोडक्ट की जगह इन पत्तों का इस्तेमाल करें, इनका लेप लगाएं और जल्द से जल्द सफ़ेद बालों की समस्या से छुटकारा पाएं।

अक्सर देखा जाता है असमय हमारे काले बाल सफ़ेद दिखने लगते हैं, और जिसका कारण पता भी नहीं चलता कितनी जल्दी क्यों हमारे बाल सफेद हो रहे। आजकल तो कम उम्र के बच्चों में भी यह समस्या देखे जा रहें हैं काले बालों के बीच में कुछ सफ़ेद बाल अचानक ही दिखने लगते हैं। थोड़ी सी लापरवाही और थोड़ी सी केयर नहीं करने की वज़ह से ऐसा हो जाता है। तो चलिए कुछ घरेलू नुस्खे मैं बताती हूं जिसको आप इस्तेमाल करके दो-तीन महीने के अंदर फ़र्क भी महसूस कर सकती हैं।

Curry leaf

करी पत्ता  – करी पत्ता हर जगह मिलता है और बहुत सस्ता भी है, बस इन पत्तों को पीसकर इनका लेप बनाना है, और उसे बालों पर अच्छी तरह लगाना है बालों की जड़ से लेकर बालों के ऊपर अच्छी तरह उसका लेप लगा ले और एक घंटा डेढ़ घंटा आप उसे वैसे ही रहने दें, फिर उसे पानी से धो ले। बाल सूखने के बाद उसके ऊपर आप तेल लगा ले।  ऐसा आप हफ्ते में दो बार या एक बार भी करेंगे तो बहुत फ़ायदा होगा। कुछ ही समय के बाद आप देखेंगे बालों का सफ़ेद होना रुक गया है और जो सफ़ेद बाल थे वे काले भी हो रहे हैं। 

नारियल का तेल और करी पत्ता  – नारियल के तेल में करी पत्ता डालकर अच्छी तरह गर्म कर लें। उसे तब तक गर्म करें जब तक करी पत्ते की नमी ना चली जाए। जैसे ही पत्तों की नमी चली जाए, पत्ते तेल के अंदर अच्छी तरह अपना असर छोड़ देते हैं। आप देखेंगे कि तेल का रंग भी बदल गया है हल्का हरे रंग का वह तेल हो जाएगा। आप उस तेल को ठंडा करके किसी जार में घर पर रख सकते हैं, यह तेल लंबे समय तक खराब नहीं होगा और उसे समय-समय पर सप्ताह में कम से कम एक या दो बार उसका मसाज करें, इससे भी आपके सफ़ेद बालों को काला करने में मदद मिलेगी।

नींबू के रस में आंवले का चूर्ण – नींबू के रस में भी आंवले का चूर्ण मिलाकर एक अच्छा लेप बना सकते हैं और इसको सप्ताह में एक बार लगाने पर और उसे कम से कम एक घंटा बालों पर रहने दें। उसके बाद उसे धो लें। ऐसा करने से भी बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं और जो सफेद बाल है वह जल्दी काले भी हो जाते हैं।

इन सब घरेलू उपाय से बहुत जल्दी ही सफेद बाल काले हो जाते हैं और दूसरा अगर हमारे सफेद बाल नहीं भी है तो वह जल्दी सफ़ेद नहीं होंगे। एक लंबे समय तक हमारे बाल काले और घने रहेंगे। इन सब उपायों को अपनाकर हम उन महंगे प्रोडक्ट्स से बच सकते हैं जो बाजार में मिलते हैं और उनका असर इतना नहीं होता जितना इनके इस्तेमाल से होता है।

– Usha Patel

पार्लर में पेडीक्योर कैसे करते हैं

ड्राई हेयर टिप्स

नवरात्र में माँ दुर्गा की कविता

नव दुर्गा माँ

माता की आराधना और उपासना की कविता।

नवरात्रि का त्यौहार आते ही माता की आराधना और उपासना में पूरा ब्रह्मांड माँ के स्वागत में जुट जाते है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ हमारे घर आगमन लेती है और इसी वजह से हम सब अपने घर की साफ-सफाई कर माता की पूजा में जुट जाते हैं। इस अवसर पर घर के द्वार पर फूल की माला और तोरण लगाकर माता का स्वागत करते हैं और नौ दिन माता के नव रूपों का स्मरण कर उनकी आराधना करते हैं उनकी पूजा करते हैं। माता के नव रूप का जिनकी पूजा हम करते हैं उनके नाम है – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

माता के नव रूपों का वर्णन करती कुछ कविताएं –

नवरात्रि में पूजे भक्तजन नव दुर्गे का हर स्वरूप।

नव रूप की महिमा सुनकर नवरात्रि का त्योहार मनाए सब।।

हाथ कमल, त्रिशूल धारण ‘शैलपुत्री’ के दर्शन कर। 

योगीजन तृप्त हुए नवरात्र के प्रथम आगमन पर।।

हाथ कमण्डल, जप की माला भव्य ज्योतिर्मय बना ‘ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप।

करें उपासना जो जन माता की अनंत फल प्राप्त करें वह।।

अर्धचंद्र मस्तक पर शोभे, वाहन सिंह सवार रहें। 

नाम ‘चंद्रघण्टा’ का जो ले परम शांति और कल्याण मिलें।।

देवी ‘कुष्माण्डा’ के चरणों में लौकिक पारलौकिक सुख मिलें।

कर उपासना चौथे दिन माँ का भव सागर से पार करें।।

कमल आसन पर विराजमान ‘पद्मासन’ देवी की जय जय।

स्कंद कुमार की माता बनकर ‘स्कंदमाता’ का स्वरूप बना।।

अमोघ फल दायिनी माँ ‘कात्यायनी’, कात्यायन की पुत्री बनी। 

अलौकिक तेज से युक्त हुआ माता की जो आराधना किया।।

ग्रह बाधा को दूर करें दुष्टों का विनाश करें। 

माँ ‘कालरात्रि’ की आराधना सातवें दिन जो जन ध्यान करें।।

‘महागौरी’ का ध्यान करें जन माँ सबका कल्याण करें।

रोग,दोष, क्लेश मिटाकर माता सबका उद्धार करें।।

सभी सिद्धियों को पाकर ‘सिद्धिदात्री’ माता कहलाती।

करें उपासना जो भक्तजन माँ हर मनोकामना पूर्ण करें।।

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी हर घर में आज आई है।

नवरूप के स्वागत में सगर विश्व ज्योत जलाई है।।

हर विपदा को हरने माता आज धरती पर आई है।

आंचल फैलाए रंक और राजा सब ने शीश झुकाई है।।

सबकी झोली भरने वाली सिंह पर सवार होकर आई है।

जय-जय गान करती धरती, कण-कण में उल्लास समाई है।।

ममता से सजी मुरत नव दुर्गा माँ स्वर्ग से उतर कर आई है। 

दशो भुजाओं से मानस का उद्धार करने माता आई है।।

भजन, कीर्तन, भोग आरती की थाल सबने सजाई है। 

महादेव के साथ माता आज साक्षात दर्शन देने आई है।।

Supriya Shaw

आज़ादी का दिन आया

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

कोरोना काल की कविता

Tea quotes for tea lovers

चाय के कप

चाय के कप में केवल

चाय ही नहीं होती, 

“चाह” होती है 

साथ बैठने की!

जिंदगी तू मुझे

जिंदगी तू मुझे, 

चाय की तरह लगती है, 

कभी बहुत मीठी,

कभी फीकी, 

कभी बहुत कड़वी लगती है।।

रिश्ते भी चाय

रिश्ते भी चाय

चाय की तरह होते है 

ज़्यादा मीठी

 ज़्यादा कड़क हो जाए 

तो गले से 

नहीं उतरते हैं।।

चाय की एक प्याली है

कहाँ रह गए तुम,

यह शाम थी कुछ ख़ास, 

चाय की एक प्याली है, 

जो बांटनी थी तुम्हारे साथ।।

सिर्फ एक चाय ही है

सिर्फ एक चाय ही है

जो बिन बुलाए 

बिना बात के 

बिना समय 

बेवजह 

मुझे खींच लेती है 

वरना और किसी में 

वो बात नहीं 

जो तेरी एक घूंट में 

मिल जाती है!

चाय बिना ना

याद बहुत आती है, 

वह सांझ की बेला, 

सुबह की लाली, 

चाय बिना ना,

बात बनती थी मेरी।।

शाम की बेला

शाम की बेला 

चाय की प्याली

होठों की मुस्कान 

कैसे मैं रोकू…😊

चाय के बहाने

चाय के बहाने

चाय के बहाने हम मिलते रहे, 

हॅंसी की मिठास रिश्तो में घोलते रहे,

जुगलबंदी पानी और चायपत्ती की होती रही,

हम चाय के बहाने तारों को देखते रहे।।

सर्दियों में चाय की प्याली

सर्दियों में चाय की प्याली देख, 

कभी ना नहीं कर सकते हैं हम।

– Supriya Shaw….✍️

कहानी की कहानी

गुस्सा भी नुकसानदायक होता है

भारतीय संस्कृति और वैलेंटाइन सप्ताह

कोरोना काल की कविता

जो सबक कोरोना दे दिया, किसी क़िताब में नहीं मिला

जो सबक कोरोना ने दिया वो ज़िंदगी के किसी क़िताब में नहीं मिला,

जर्जर होते गए रिश्ते ऑंसू पोछने वालो की आहट ना मिली थी कहीं।

ऑंखें दरवाज़े पर आस लगाए ताकती रही, कंधा देने वाला ना कोई दिखा,

अपनों का साथ छूटता गया, साॅंसे अकेले दम तोड़ती रही।

इंसानियत कहीं मरती दिखीं, कहीं मोक्ष देता भगवान् मिला,

अपना नहीं था पर वो, सफेद कपड़े हर किसी को पहनाता दिखा। 

श्मशान बना गली-गली, राख ना उठाने वाला अपना मिला, 

वह कौन था जो राख मटकी में भर नाम उस पर लिखता रहा।

मिट गया निशां, खाली पड़ा घर-बार, दरवाज़े पर ना कोई अपना खड़ा दिखा, 

इस सफ़र पर ना राही, ना राहगीर था, अकेला चलता भीड़ में हर अपना दिखा।

ना होश था ख़ुद का, ना ज़िक्र किसी का होता दिखा, 

हर शख्स यहाॅं खौफ़ में, मौत से जूझता दिखा।

बुझ गया चिराग कई, अंधेरा घना सामने हुआ, 

क्या कहें इस काल में, काल बन निगलता रहा।

समय का कहर

समय का कहर

हर किसी के दिल में एक आग सी जल रही है।

हर रोज कभी सुलगती कभी बुझती जा रही है।।

खौफ है दहशत है मुस्कुराने की कोशिश भी है।

अपनों के बिछड़ने की ख़बर हर रोज मिल रही है।।

कोशिश चल रही है समय को मात देने की।

हर पहल पर धड़कने सबकी तेज हो रही है।।

ख़ामोश हर शहर है बोलती हर नज़र है।

हर रोज ज़िंदगी नया दांव चल रही है।।

पता है सब

हर बात में कहना “पता है सब”

मगर क्या सच में पता है सब?

जीवन के इस झूठ को अब तक स्वीकारा ना कोई, 

अहं रोके रखा या आदतों  ने जड़ बना ली मन में, 

ऐसे अहंकार को क्या जगह मिली समाज में!

काश समझ आती तो बात कुछ और होती, 

स्वार्थ की जगह भी “पता है सब” में ना सिमट जाती, 

यही है सच! कहते-कहते मर मिटता है इंसान, 

कभी रोष में, कभी हठ में, राग बिलापता है इंसान, 

ख़ुद को भ्रम की गहराई में क्यूँ डुबोता है इंसान, 

पूछे कोई जो मुझसे क्या है इसका कोई जवाब, 

“पता नहीं” कह कर शायद मैं भी सोचू बार-बार।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता

कहानी

कविता – वह पल दोहरा लेती हूँ

कैसे ना लिखूॅं

आँखें बंद करके

वह पल दोहरा लेती हूँ,

ज़िंदगी जीने की 

वज़ह ढूंढ लेती हूँ,

हर ख़्वाब को 

हक़ीक़त बना कर 

ज़िंदगी में शामिल कर लेती हूँ,

ज़िद समझो शायद 

पर कोशिश है मेरी,

हर किरदार को निभाने का 

हुनर ढूंढ लेती हूँ,

जुगनू नहीं मैं 

जो कुछ पल की रोशनी दे 

दम तोड़ देती है,

मैं वो सितारा हूँ

जो अपनी रोशनी से 

ख़ुद जगमगाती हूँ।।

कैसे ना लिखूॅं

कैसे ना लिखूॅं मन की बातें,

जब क़लम हाथ में लेती हूॅं, 

वह ख़ुद ब ख़ुद चलती है,

मैं कुछ नहीं कहती…

जो कहती है मेरी क़लम कहती है,

कभी अर्थहीन कहती है,

कभी जज़्बातों में लिपटी रहती है,

कभी झूठ, कभी सच कहती है,

जो कहती है मेरी क़लम कहती है, 

मैं कुछ नहीं कहती…

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर दिल को यह एहसास हुआ,

ज़िंदगी से ख़ूबसूरत तुमसा हमराज़ मिला।

अनकही बातों को समझे ऐसा राज़दार मिला,

प्यार से बना रिश्ते को नाम मिला।

हमारी धड़कनों पर तुम्हारा अधिकार हुआ,

दिल के तारो में प्यार का झंकार हुआ।

तुमसे मिलकर मुझे ख़ुद से प्यार हुआ, 

अटूट बंधन मन पर, तन पर तुम्हारा अधिकार हुआ।

कहानी की कहानी 

कोरोना की कहानी

कोरोना संक्रमण का डर

कविता – पिता का दायित्व

परिवार रुपी टहनियों का, भरण पोषण करते जड़ रूपी पिता, 

इनके बिना ना हरा-भरा लगता है घर संसार हमारा। 

हर दायित्व निभाते रहते, शिकन ना चेहरे पर आने देते,

हमारी खुशियों की खातिर, अपना सर्वस्व कुर्बान है करते।

प्यार, त्याग और समर्पण से बना व्यक्तित्व है इनका , 

सबके मन में पिता का दर्ज़ा भगवान् से ना कम है। 

छत्रछाया में इनके गुजरता हमारा जीवन सदा सुरक्षित, 

हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन कर, मंज़िल तक पहुंचाते हैं पिता।

पिता एक मार्गदर्शक

*पिता* अपने आप में गंभीर और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उभर कर आता है,

प्यार, सम्मान और आदर से भावविभोर हृदय हो जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर और चेहरे पर मुस्कान दिखता है,

दिन-रात हो, मौसम कोई हो, परिवार की ख़ातिर काम पर जाना होता है।

सबके दुख को सुख में बदलना इनको बखूबी आता है,

अपनी दर्द सीने में दबा कर ख़ुश रहना भी आता है।

पिता की छत्रछाया में जीवन जितना बीत जाता है,

वहीं किताब बनकर पूरा जीवन मार्गदर्शक बन जाता है।।

कहानी – रात की बात

कहानी की कहानी “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण”

कहानी – कोरोना संक्रमण का डर

“रात” – चाँद और तन्हाई

रात” – चाँद और तन्हाई

मयंक आज बहुत उदास था। अदिति से आज हुआ झगड़ा उस के दिमाग़ पर बुरी तरह छाया हुआ था। उसे होश ही नहीं था कि उसने दोपहर के बाद कुछ खाया भी नहीं है। रात के बारह बजने को थे लेकिन मयंक की आँखों में नींद नहीं थी। आज पूर्णमासी की रात थी और चाँद भी आज अपेक्षाकृत बड़ा नज़र आ रहा था। मयंक ने कुछ समय पहले ही अपने पिता का इलेक्ट्रिकल का कारोबार सम्भाला था और अब वो अदिति को उतना समय नहीं दे पाता था जितना कॉलेज के समय देता था। उसे अपने व्यापार के सिलसिले में कभी चाइना कभी जापान और कभी भारत के ही विभिन्न शहरों में चक्कर लगाने पड़ते थे। वो व्यापार फैलाने में लगा था और व्यस्तता के कारण मिलना तो दूर अदिति से फ़ोन पर भी बात करना काफ़ी कम हो गया था। आज भी वो मुंबई आया हुआ था और एक मीटिंग में होने के कारण उसने अदिति का फ़ोन कई बार काट दिया था जिससे वो बहुत भड़क गयी थी। होटेल के कमरे की खिड़की पर वो अकेले खड़ा खड़ा सोच रहा था कि वो समझती क्यूँ नहीं है? थोड़ा व्यापार बढ़ा लूँ उसके बाद जब सब सेट हो जाएगा तो मिलेंगे ना हम पहले की तरह और फिर शादी के लिए घर बालों से भी बात करेंगे लेकिन वो थी कि समझने को तैयार ही नहीं थी। पिछली बार मिले थे तब भी उसे यही समझाया था लेकिन उसका बचपना जाता ही नहीं। आज तो उसने सब सम्बंध ख़त्म करने की धमकी भी दे डाली थी जिससे मयंक को भी गुस्सा आ गया था और उसने भी कुछ उल्टा सीधा बोल दिया था। 

लेकिन असल में वो अदिति से अलग बिल्कुल नहीं होना चाहता था। वो उसका बरसों पुराना प्यार थी और अब वो प्यार खोने का डर उसे खाए जा रहा था। उसने एक बार फिर अदिति को फ़ोन लगाया था लेकिन उसने गुस्से से फ़ोन काट दिया था। ये लड़कियाँ भी ना हम पुरुषों की समस्या कभी नहीं समझेंगी यही सोच सोच कर वो अकेला अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा व्यापार को छोड़ कर सिर्फ़ अदिति के बारे में सोच रहा था। उसका मन बहुत भारी हो रहा था। काश इस समय कोई साथ होता तो वो उससे बात कर के अपना मन हल्का कर लेता।

तभी उसकी नज़र चाँद पर जा कर टिक गयी। उसे लगा जैसे चाँद उसके अकेलेपन और उसकी उधेड़बुन को समझ रहा है और उसे एक व्यंग्यात्मक मुस्कान दे रहा है।

मयंक ने अपनी भवें हिलाई जैसे पूछ रहा हो क्या भाई, काहे मुस्कुरा रहे हो, हमें देख कर बहुत मज़ा आ रहा है क्या तुम्हें हमारी परिस्थिति पर? उसे लगा जैसे चाँद ज़ोर से हँसा। भाई मत कहो मुझे उसे चाँद से आवाज़ आयी। या तो छोटे बच्चे की तरह मामा बोल कर ताली बजाओ या फिर पके हुए मायूस आशिक़ की तरह मुझे देख कर महबूबा की याद में ठंडी आहें भरो। भाई वाला हमारा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है। 

मुझे अगर आहें ही भरनी है तो मैं तुम्हें देख कर ही क्यूँ भरूँ, ऐसा क्या ख़ास है तुम मे? मयंक बोला…….

मुझमें क्या ख़ास है ये मुझे नहीं पता। लेकिन दुनिया भर के दुखी या सूखी आशिक़, अपने साजन का इंतज़ार करती प्रेमिका और फिर से मिलने की आस में बैठे बिछड़े हुए दिल मुझे ही ताकते रहते हैं। चाँद ने खुलासा किया…….

मतलब तुम्हारे हिसाब से में भी किसी उम्मीद से ही तुम्हारी तरफ़ देख रहा हूँ? मयंक ने सवाल किया। 

चाँद फिर ज़ोर से हँसा। वो तो तुम जानो और तुम्हारा दिल लेकिन तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ…. कैसे.. कैसे ? मयंक ने उत्सुकता और अधीरता से पूछा, 

मैं तुम्हें ये देख कर बता सकता हूँ की अदिति क्या कर रही है। चाँद मुस्कुरा कर बोला …….sssss सच्ची?

तो बताओ ना जल्दी से, उसमें पूछ क्या रहे हो? जब मेरे मन की बात जानते हो तो मदद करो मैं भी हर आशिक़ की तरह तुम्हें अपना गुरु मान लूँगा। मयंक विस्मय और अधीरता के मिश्रित स्वर में बोला……. 

रुको बताता हूँ कह कर चाँद दो पल रुका और फिर बोला। वो करवटें बदल रही है। उसे भी तुम्हारी तरह नींद नहीं आ रही है। कभी फ़ोन उठाती है कभी वापस रखती है। और कभी खिड़की से मेरी तरफ़ देखती है। लगता है उसे भी मेरी मदद की ज़रूरत है। ….. 

सच कह रहे हो? क्या वो अब भी मेरे लिए परेशान है, दोपहर में तो वो रिश्ता तोड़ कर चली गयी थी, मेरा फ़ोन भी नहीं उठाया। तो अब क्यूँ परेशान है ?……मयंक बड़बड़ाया।…. 

अरे यार इतना भी नहीं समझते, दिल तो उसके भी पास है। इतने दिन तेरे साथ रही, अहसास ऐसे ही थोड़ी मर जाते हैं। चाँद ने समझाया …….

इतनी परेशानी है तो फ़ोन कर लेती, मैंने थोड़ी मना किया था । मयंक रिसाए से स्वर बोला ……

तुम समझदार हो कर ऐसी बात मत करो। चाँद गुर्रया । उसका मन भी उथल-पुथल हो रहा है, वो थोड़ा डर रही है कि तुम कैसे प्रतिक्रिया दोगे। ऊपर से हर प्रेमिका चाहती है कि उसका प्रेमी उसे मनाए ।

ऐसे प्रतिक्रिया दोगे, ऊपर से हर प्रेमिका चाहती है कि उसका प्रेमी उसे मनाए इतनी जल्दी हार मानने से थोड़ी चलेगा, फ़ोन लगाओ उसे……. 

नहीं उठाया तो ?…….. मैं कह रहा ना फ़ोन लगाओ वो तुम्हारे फ़ोन का ही इंतज़ार कर रही है।……..

नहीं उठाया तो देख लेना। कह कर मयंक ने अपना फ़ोन उठाया और अदिति का नम्बर दबा दिया। एक घंटी बजने से पहले ही अदिति ने फ़ोन उठा लिया। 

कुछ क्षण दोनों तरफ़ खामोशी छाई रही फिर मयंक बोला। हेलो अदिति ….सुनते ही अदिति फूट फूट कर रोने लगी। इसके अंदर का सारा गुबार उसके आँसुओं के ज़रिए बाहर आ चुका था और अब उसके दिल में सिर्फ़ प्यार रह गया था। कई देर तक गिले शिकवे दूर होते रहे। थोड़े आँसू, थोड़ा प्यार, थोड़ी झिड़की, थोड़ा दुलार करते करते वो दोनों फिर से एक दूसरे में समा चुके थे।

मयंक बहुत खुश था। जल्दी मिलने का वादा कर उसने फ़ोन रखा और भाग कर खिड़की की तरफ़ गया और बोला। मान गए तुम्हें गुरू तुमने मेरा प्यार बचा लिया, इसलिए आज से तुम ना मेरे मामा, ना मेरे महबूब बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लव गुरू हो। 

लेकिन चाँद तब तक बादलों के पीछे छुप चुका था। चाँद उसके अंतस में बैठ कर उसको रास्ता दिखा कर जा चुका था शायद किसी और प्रेमी को रास्ता दिखाने।

रात गुज़र रही थी लेकिन अब मयंक तनहा नहीं था। प्यार का अहसास और पुनः मिलन की आस उसके साथ थी।

निर्मल…✍️

कहानी – कोरोना संक्रमण का डर

कहानी – हमसफ़र जूता

कहानी की कहानी “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण”

कहानी एक दृष्टिकोण

कोई भी कहानी मुख्यतः तीन चीज़ों पर निर्भर करती है। “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण” किसी दृश्य पर हमारी दृष्टि पड़ती है फिर उसे अपने दृष्टिकोण से हम कहानी का रूप देते हैं। दृश्य एक ही होता है लेकिन उस पर पड़ने वाली दृष्टि और फिर हर दृष्टि का दृष्टिकोण अलग अलग हो सकता है। 

उदाहरण के तौर पर एक दृश्य है की जंगल में शेरनी, मादा हिरण का शिकार कर रही है। दृश्य एक ही है लेकिन उसे कई दृष्टियाँ अपने अलग अलग दृष्टिकोण से देख सकती हैं। एक कहानी हिरण की हो सकती है कि एक ज़ालिम शेरनी उस निरीह प्राणी के पीछे पड़ी है और कैसे वो उसे मार कर खा गयी या हिरण ने उसे कैसे छका कर अपने प्राण बचाए, एक कहानी शेरनी की हो सकती है कि उसे कई दिन से शिकार नहीं मिला, वो भूखी है और अगर ये हिरण उसकी पकड़ में नहीं आया तो उसके और उसके बच्चों के प्राण संकट में पड़ जाएँगे। 

एक कहानी हिरण और शेरनी के बच्चों की हो सकती है जिन्हें दुनियादारी कोई मतलब नहीं वे तो सिर्फ़ अपनी अपनी माता का इंतज़ार कर रहे हैं। एक कहानी उस आदमी की भी हो सकती है जिसे हिरण मरे या शेर इस से कोई मतलब नहीं, उसे तो बस एक अच्छी सी कहानी मिलनी चाहिए। एक ही दृश्य के कई दृष्टिकोण कहानी के लिए दृश्य यथार्थ भी को सकता है और काल्पनिक भी एक दृश्य वो होता है जो हमारे सामने घटित हुआ हो या फिर वो दृश्य जो हम अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे कर बनाएँ। इसके अलावा एक दृश्य वो भी होता है जो हमने ख़ुद तो ना जिया हो लेकिन किसी और के द्वारा हमें बताया गया हो । कहने का तात्पर्य ये कि किसी भी दृश्य को कहानी बनाने के लिए दृष्टि तीखी और अलग दृष्टिकोण हो तो कहानी सुंदर और सुघड़ बनती है।

ऐसे ही एक बार हम एक कहानी लिख रहे थे, एक देशभक्त बाप और उसके देशद्रोही बेटे की कहानी काफ़ी बढ़िया बन पड़ी थी लेकिन उसका अंत कैसे करें ये हमें बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था। जैसे किसी हवाई सफ़र में विमान का takeoff तथा landing सबसे महत्वपूर्ण होते हैं वैसे ही किसी भी कहानी की शुरुआत और उस कहानी का अंत ही उस कहानी का भविष्य तय करते हैं। हर सफ़र में थोड़े पड़ाव और थोड़े मोड़ बहुत ज़रूरी होते हैं अन्यथा सफ़र बहुत उबाऊ हो जाता है ऐसे ही कहानी के सफ़र में भी थोड़े मोड़ आने अति आवश्यक है कहानी की रोचकता बनाए रखने के लिए।

अब हमारी कहानी में कौन जीते ये हमें बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था। देशभक्त बाप जो सही है लेकिन अपनी ज़िंदगी जी चुका है या देशद्रोही बेटा जो ग़लत है लेकिन उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं देखा । यहाँ आ कर हक़ीक़त और कहानी में थोड़ा फ़र्क़ आ जाता है। सीधी सीधी कहानी जिसमें बाप अपने देशद्रोही बेटे को मार देता है या पुलिस में पकड़वा देता है अथवा पुत्र मोह में बाप भी देशद्रोही हो जाता है, हमें जम नहीं रहा था.

हम निराश हो गए और कहानी को वहीं छोड़ दिया। वो कहानी अब अच्छी नहीं लग रही थी। कहानी जब लेखक को ही अच्छी ना लगे तो वो पाठकों से अच्छी लगने की उम्मीद कैसे कर सकता है इसलिए हमने उस कहानी को वहीं छोड़ दिया। कहानी बिगड़ चुकी थी ।

एक दिन हमारे घर हमारे एक मित्र अपने परिवार के साथ खाने पर आए। वे बहुत अच्छे लेखक थे और फ़िल्मों में गाने, संवाद इत्यादि लिखा करते थे। उनकी एक किताब भी छप चुकी है। परिवार में वे, उनकी पत्नी और उनका एक किशोर उम्र का लड़का था। बातें होने लगीं, मित्र सुलभ हँसी मज़ाक़ चलने लगा। तभी हमने अपने मित्र के लड़के से पूछा? क्यूँ ईशान क्या कर रहे हो आज कल, भविष्य का कुछ सोचा है? उसके बोलने से पहले ही हमारे मित्र बोल पड़े।……लेखक का बेटा, लेखक ही बनेगा कोई व्यापारी थोड़ी बनेगा। फिर अपनी ही बात पर ज़ोर से ठहाका लगा कर उन्होंने बहुत गर्व से अपने बेटे के कंधे पर हाथ रख दिया। हालांकि बात उन्होंने मज़ाक़ में ही कही थी लेकिन हमारे दिमाग में बिजली सी कौंध गयी, “लेखक का बेटा लेखक ही बनेगा ये ज़रूरी तो नहीं” लेकिन हमारी कहानी को ये वाक्य एक नया दृष्टिकोण दे गया था। एक देशभक्त का बेटा देशभक्त ही बनेगा ये भी ज़रूरी नहीं लेकिन कहानी में ऐसा ही तो मोड़ चाहिए था।

मित्र के जाने के बाद हम फिर उसी कहानी को लेकर बैठ गए। अब हमें अपनी कहानी को लैंड करवाने का रास्ता मिल गया था। हमने इस कहानी के देशद्रोही बेटे को एक अंडरकवर एजेंट बनाया जो आतंकवादियों को पकड़ने के लिए ही आतंकवादी बना हुआ है और कहानी पूरी हो गयी। कहानी बिगड़ते बिगड़ते बन गयी थी और बहुत अच्छी बनी थी। सबने उस कहानी की बहुत तारीफ़ की और हमने अपने दृष्टिकोण को दिशा देने के लिए मन ही मन अपने मित्र को धन्यवाद दिया।

निर्मल…✍️

उत्तराखंड की ऐपण कला

जादुई डायरी

आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम कविता

चीन के वुहान शहर से भारत पहुॅंचा कोरोना की कहानी

कोरोना वायरस

चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ यह कोरोना वायरस 2020 में भारत में प्रवेश कर चुका था। नए संक्रमण के बारे में हर रोज एक नयी कहानी बन रही थी। हम सब डरे हुए थे क्योंकि इसकी पुष्टि अभी पूरी करनी बाकी थी कि आखिर इसका दुष्प्रभाव कितना प्रबल है मगर जितनी तेजी से यह फैल रहा था और लोग इससे संक्रमित होकर बीमार हो रहे थे और मर रहे थे यह सब देख कर सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया, जिसके कारण पूरा देश ठहर सा गया था। जो जहां था वहीं जैसे रुक गया था।

मार्च से मई तक का समय लॉकडाउन में गुज़रा, इस बीच छोटी कंपनियां, छोटे-छोटे रोज़गार जो हर शहर में, सड़क के किनारे, फुटपाथ पर व्यवसाय से गुज़ारा करते थे सब ठप्प हो चुका था सब बंद हो चुका था। उनके रहने और खाने की असुविधा पैदा हो चुकी थी। वह अपने घर लौटना चाहते थे। मगर उनकी मज़बूरी यह थी कि लॉकडाउन में कोई एक शहर से दूसरे शहर गाॅंव नहीं जा सकता था जिसके कारण उनको कई दिनों तक भूखे रहकर गुजारना पड़ा था।

छोटे बड़े यातायात बंद होने से जितने रिक्शा चालक, ऑटो चालक, बस चालक थे उनको जो कि हर दिन की आमदनी पर उनका गुजारा होता था वह राशन, सब्जियों के मोहताज हो गए। जिनके पास पैसा था उनका गुजारा हो गया, मगर जिन्हें सबसे ज़्यादा परेशानी हुई वह थे छोटे व्यवसायिक और फुटपाथ पर रहने वाले लोग, वो दर-दर भटक रहे थे। क्योंकि काम के साथ जो व्यवसायी कर्मचारियों को रहने और खाने की व्यवस्था किए थे वह सब बंद कर दिए, उनको घर से बेघर होना पड़ा। इस हालत में रास्ते पर जहां-तहां सोकर कई कई रात गुजारे। 

यह किसी एक शहर या कस्बे में नहीं हुआ, ऐसा पूरे भारतवर्ष में हुआ। बहुत दुखदाई था वह मार्च 2020 से अगस्त 2020 तक का समय लोग रोते और बिलखते सड़कों पर दिखाई दे रहे थे। कुछ लोगों ने शहर से अपने गाॅंव पैदल जाना शुरू कर दिया था जिसमें कई गर्भवती महिलाएं भी थी जो पैदल 200-300 किलोमीटर तक का सफ़र तय कर रही थी। क्योंकि उन्हें अपने घर जाना था और उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

 जगह-जगह पर पुलिस रोककर पूछताछ कर रही थी और उनकी सहायता भी कर रही थी। शहर से गाॅंव पलायन होते लोगों से सरकार को यह डर था की कहीं यह संक्रमण गाॅंवों-कस्बों में ना पहुॅंचे। अगर उस वक्त गांव में पहुंच जाता यह संक्रमण तो परिस्थिति को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता, क्योंकि उस वक्त इस बीमारी से लड़ने के लिए देश पूरी तरह तैयार नहीं था। इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। इसलिए सरकार ने यह आदेश जारी किया था जो भी एक शहर से दूसरे शहर या गांव जाए उनको 14 दिन कोरेनटाइन होना पड़ेगा। जिसकी वजह से हर जगह आने वाले लोगों के लिए सरकार ने कोरेनटाइन सेंटर की व्यवस्था की थी। वहाॅं उन्हें 14 दिन तक रुकने के बाद ही वे अपने घर जा सकते थे।

कोरेनटाइन सेंटर में उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा, कई लोगों ने अपनी तकलीफ मीडिया के सामने बताया, जिसे सुनकर हर किसी की ऑंखों में ऑंसू आ जाते थे। ऐसी स्थिति में उन्हें 14 दिन गुजार कर ही घर भेजा जाता था। संघर्ष का वो समय लोग कभी नहीं भूलेंगे। 

कोरोना संक्रमण का डर