“रात” – चाँद और तन्हाई

रात” – चाँद और तन्हाई

मयंक आज बहुत उदास था। अदिति से आज हुआ झगड़ा उस के दिमाग़ पर बुरी तरह छाया हुआ था। उसे होश ही नहीं था कि उसने दोपहर के बाद कुछ खाया भी नहीं है। रात के बारह बजने को थे लेकिन मयंक की आँखों में नींद नहीं थी। आज पूर्णमासी की रात थी और चाँद भी आज अपेक्षाकृत बड़ा नज़र आ रहा था। मयंक ने कुछ समय पहले ही अपने पिता का इलेक्ट्रिकल का कारोबार सम्भाला था और अब वो अदिति को उतना समय नहीं दे पाता था जितना कॉलेज के समय देता था। उसे अपने व्यापार के सिलसिले में कभी चाइना कभी जापान और कभी भारत के ही विभिन्न शहरों में चक्कर लगाने पड़ते थे। वो व्यापार फैलाने में लगा था और व्यस्तता के कारण मिलना तो दूर अदिति से फ़ोन पर भी बात करना काफ़ी कम हो गया था। आज भी वो मुंबई आया हुआ था और एक मीटिंग में होने के कारण उसने अदिति का फ़ोन कई बार काट दिया था जिससे वो बहुत भड़क गयी थी। होटेल के कमरे की खिड़की पर वो अकेले खड़ा खड़ा सोच रहा था कि वो समझती क्यूँ नहीं है? थोड़ा व्यापार बढ़ा लूँ उसके बाद जब सब सेट हो जाएगा तो मिलेंगे ना हम पहले की तरह और फिर शादी के लिए घर बालों से भी बात करेंगे लेकिन वो थी कि समझने को तैयार ही नहीं थी। पिछली बार मिले थे तब भी उसे यही समझाया था लेकिन उसका बचपना जाता ही नहीं। आज तो उसने सब सम्बंध ख़त्म करने की धमकी भी दे डाली थी जिससे मयंक को भी गुस्सा आ गया था और उसने भी कुछ उल्टा सीधा बोल दिया था। 

लेकिन असल में वो अदिति से अलग बिल्कुल नहीं होना चाहता था। वो उसका बरसों पुराना प्यार थी और अब वो प्यार खोने का डर उसे खाए जा रहा था। उसने एक बार फिर अदिति को फ़ोन लगाया था लेकिन उसने गुस्से से फ़ोन काट दिया था। ये लड़कियाँ भी ना हम पुरुषों की समस्या कभी नहीं समझेंगी यही सोच सोच कर वो अकेला अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा व्यापार को छोड़ कर सिर्फ़ अदिति के बारे में सोच रहा था। उसका मन बहुत भारी हो रहा था। काश इस समय कोई साथ होता तो वो उससे बात कर के अपना मन हल्का कर लेता।

तभी उसकी नज़र चाँद पर जा कर टिक गयी। उसे लगा जैसे चाँद उसके अकेलेपन और उसकी उधेड़बुन को समझ रहा है और उसे एक व्यंग्यात्मक मुस्कान दे रहा है।

मयंक ने अपनी भवें हिलाई जैसे पूछ रहा हो क्या भाई, काहे मुस्कुरा रहे हो, हमें देख कर बहुत मज़ा आ रहा है क्या तुम्हें हमारी परिस्थिति पर? उसे लगा जैसे चाँद ज़ोर से हँसा। भाई मत कहो मुझे उसे चाँद से आवाज़ आयी। या तो छोटे बच्चे की तरह मामा बोल कर ताली बजाओ या फिर पके हुए मायूस आशिक़ की तरह मुझे देख कर महबूबा की याद में ठंडी आहें भरो। भाई वाला हमारा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है। 

मुझे अगर आहें ही भरनी है तो मैं तुम्हें देख कर ही क्यूँ भरूँ, ऐसा क्या ख़ास है तुम मे? मयंक बोला…….

मुझमें क्या ख़ास है ये मुझे नहीं पता। लेकिन दुनिया भर के दुखी या सूखी आशिक़, अपने साजन का इंतज़ार करती प्रेमिका और फिर से मिलने की आस में बैठे बिछड़े हुए दिल मुझे ही ताकते रहते हैं। चाँद ने खुलासा किया…….

मतलब तुम्हारे हिसाब से में भी किसी उम्मीद से ही तुम्हारी तरफ़ देख रहा हूँ? मयंक ने सवाल किया। 

चाँद फिर ज़ोर से हँसा। वो तो तुम जानो और तुम्हारा दिल लेकिन तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ…. कैसे.. कैसे ? मयंक ने उत्सुकता और अधीरता से पूछा, 

मैं तुम्हें ये देख कर बता सकता हूँ की अदिति क्या कर रही है। चाँद मुस्कुरा कर बोला …….sssss सच्ची?

तो बताओ ना जल्दी से, उसमें पूछ क्या रहे हो? जब मेरे मन की बात जानते हो तो मदद करो मैं भी हर आशिक़ की तरह तुम्हें अपना गुरु मान लूँगा। मयंक विस्मय और अधीरता के मिश्रित स्वर में बोला……. 

रुको बताता हूँ कह कर चाँद दो पल रुका और फिर बोला। वो करवटें बदल रही है। उसे भी तुम्हारी तरह नींद नहीं आ रही है। कभी फ़ोन उठाती है कभी वापस रखती है। और कभी खिड़की से मेरी तरफ़ देखती है। लगता है उसे भी मेरी मदद की ज़रूरत है। ….. 

सच कह रहे हो? क्या वो अब भी मेरे लिए परेशान है, दोपहर में तो वो रिश्ता तोड़ कर चली गयी थी, मेरा फ़ोन भी नहीं उठाया। तो अब क्यूँ परेशान है ?……मयंक बड़बड़ाया।…. 

अरे यार इतना भी नहीं समझते, दिल तो उसके भी पास है। इतने दिन तेरे साथ रही, अहसास ऐसे ही थोड़ी मर जाते हैं। चाँद ने समझाया …….

इतनी परेशानी है तो फ़ोन कर लेती, मैंने थोड़ी मना किया था । मयंक रिसाए से स्वर बोला ……

तुम समझदार हो कर ऐसी बात मत करो। चाँद गुर्रया । उसका मन भी उथल-पुथल हो रहा है, वो थोड़ा डर रही है कि तुम कैसे प्रतिक्रिया दोगे। ऊपर से हर प्रेमिका चाहती है कि उसका प्रेमी उसे मनाए ।

ऐसे प्रतिक्रिया दोगे, ऊपर से हर प्रेमिका चाहती है कि उसका प्रेमी उसे मनाए इतनी जल्दी हार मानने से थोड़ी चलेगा, फ़ोन लगाओ उसे……. 

नहीं उठाया तो ?…….. मैं कह रहा ना फ़ोन लगाओ वो तुम्हारे फ़ोन का ही इंतज़ार कर रही है।……..

नहीं उठाया तो देख लेना। कह कर मयंक ने अपना फ़ोन उठाया और अदिति का नम्बर दबा दिया। एक घंटी बजने से पहले ही अदिति ने फ़ोन उठा लिया। 

कुछ क्षण दोनों तरफ़ खामोशी छाई रही फिर मयंक बोला। हेलो अदिति ….सुनते ही अदिति फूट फूट कर रोने लगी। इसके अंदर का सारा गुबार उसके आँसुओं के ज़रिए बाहर आ चुका था और अब उसके दिल में सिर्फ़ प्यार रह गया था। कई देर तक गिले शिकवे दूर होते रहे। थोड़े आँसू, थोड़ा प्यार, थोड़ी झिड़की, थोड़ा दुलार करते करते वो दोनों फिर से एक दूसरे में समा चुके थे।

मयंक बहुत खुश था। जल्दी मिलने का वादा कर उसने फ़ोन रखा और भाग कर खिड़की की तरफ़ गया और बोला। मान गए तुम्हें गुरू तुमने मेरा प्यार बचा लिया, इसलिए आज से तुम ना मेरे मामा, ना मेरे महबूब बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लव गुरू हो। 

लेकिन चाँद तब तक बादलों के पीछे छुप चुका था। चाँद उसके अंतस में बैठ कर उसको रास्ता दिखा कर जा चुका था शायद किसी और प्रेमी को रास्ता दिखाने।

रात गुज़र रही थी लेकिन अब मयंक तनहा नहीं था। प्यार का अहसास और पुनः मिलन की आस उसके साथ थी।

निर्मल…✍️

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