“Tere apne tujhse kuchh ummid lagaye baithe hain”
भूल से ही भूल हो जाया करती है
एक अलग दुनिया हम सज़ा लेते हैं।
अपनी खुशियो का दर्ज़ा पहला रखते हैं,
अपनों की उम्मीदो को जब हम भूल जाते हैं।
महलो के आशियाने को हीरे जवाहरातो से सजाते हैं,
तब अपने भी अपनों से दूरी बनाए रखते हैं।
उम्मीद के आँसू इंतज़ार में सूख जाते हैं,
जब महलो के दरवाज़े भी बंद नज़र आते हैं।
अपनों का साथ सपना बनकर रह जाता हैं,
जब उम्मीद की घड़ियाँ इंतज़ार में बदल जाती है।
अपनो से उम्मीद अपने ही करते हैं,
नाउम्मीदी से अपनों को दुःखी हम करते हैं।।
– Supriya Shaw…