कविता – एक मधुर मुस्कान

Usha Patel

 हॅंस दे जब छोटा सा बचपन मातृभाव जीवित होता हैं,

कोई हँसकर कह दे मैं तेरा हूँ, दुःख तेरा सीमित होता है,

रिश्तों में आ जाए मधुरता, बैठ करें जब हॅंसी ठिठोली,

कितना प्यार बरसता है हम हँसकर खेले आँख मिचौली,

कितने भंवरे जीवित होते हॅंसता जब कलियों का यौवन,

कल-कल हॅंसती जब सरितायें तरुओं में आ जाएं जीवन,

तेरी एक हॅंसी छोटी सी, कितनी बाधा कर दे आसान,

फिर बज उठती मन के वीणा में एक मधुर सी तान,

हॅंसी तुम्हारे उर अंदर की व्यक्त करें अधरों की भाषा,

ये मन्द-मन्द मुस्कान तुम्हारी दूर करें घनघोर निराशा,

होठों के सुख की मुस्की में छिपी हुई एक नयी कहानी,

कोई हँसकर नज़र झुका ले, समझो है तेरी ये प्रीत पुरानी,

अंतर्मन के भाव बदलती बस ये एक मधुर मुस्कान,

फिर बज उठती मन के वीणा में एक मधुर सी तान। 

चल पड़े हम

अब चल पड़े हम अग्निपथ पर,

जब छोड़ सुख का हर धरातल,

अब तपकर ही हम कुंदन बनेंगे,

लह लहायेगा मन का मरुस्थल,

अब इन राहों की तपती धूल में,

सब जल रहे हैं अवसाद दिल के,

मानो मुझसे गर्म झोंके कह रहें हैं,

बस कुछ दूर है ख़ुशियों के बादल,

तुझे मनो वासनाएं बहकाएंगी,

बस देखना मत तू पीछे पलट-कर,

अपने हौसलों  की ओट लेकर,

तू बढ़ता चल जा अग्निपथ पर,

माना मंज़िल से पहले तू अगर,

जलकर खाक में मिल जायेगा,

फिर आनेवाली नस्लों के ख़ातिर,

तू एक नया हौंसला बन जायेगा। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

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