कविता

होली पर कविता

Holi image

कविता – रंगों की बौछार

आया होली का त्यौहार,

लाया रंगों की बौछार,

हंसी, खुशी सब त्यौहार मनाओ,

वैर- भाव सब दूर भगाओ।

खूब उड़ाओ रंगों को,

ये दुनिया हो सतरंगी,

और हम होकर रंग बिरंगी,

बन जाओ सबके मनरंगी।

ख़ुशी का रंग है सबसे न्यारा,

छुट ना जाये, कोई अंगना,

चाहे रंग छिड़क लो गुलाबी,

पिचकारियाँ ही उंडेल दो सारी।

आज ख़ुद को भिगो लो इन रंगों में, 

होली के रंगो में अलग ही ज़िन्दगी बसती है,

जी भर के जियो आज का यह दिन यारों,

होली के दिन तो अलग ही मस्ती झलकती है।

सब मिल गए आज देखो,

सब सने है रंगों के त्यौहार में,

हंसी, खुशी सब त्यौहार मनाओ,

वैर- भाव सब दूर भगाओ।

कविता – रंग बरसे

होली भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है,

होली रंगो का हंसी- खुशी त्यौहार है,

रंग भरे दिन आए है, ऋतु में भी मादकता छायी है,

उषा- धरती आज रंगी है, इंद्र धनुष सी खुशियाँ लायी है,

गेहूँ की बाली इठलाने लगी, सरसों खिल उठती है,

आज धरती अपने रंगो से सजी हुई है,

चारों तरफ रंग बरसे, ढोल- मंजीरों की धुन बजती है,

गुझिया, नमकीन और ठंडाई से होता सबका स्वागत है,

नैनों की पिचकारियाँ, भावों के रंग है,

भीगे तन- मन आत्मा, होली का दस्तूर है,

नीला, पीला रंग गुलाबी, पिचकारी ने धूम मचाई,

मस्ती करती इतराती, सबके चेहरे पर खुशियाँ लाई,

आओ सब मिलकर मनाये होली का त्यौहार,

ख़ूबसूरत रंगो से रंग जाए हम सबका जीवन।।

लेखिका- उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

Holi poem

rango ka tyohar Holi per Hindi kavita

हिंदी कविता – भाईचारा

उषा पटेल

घर-घर उठती दीवारें, दरक रहे जहाँ स्वप्न्न ही सारे, एकाकी,

है बस यही प्रार्थना ईश्वर से, सदा बना रहे यूँ प्यार हमारा।

सुख हो या हो दुःख कोई, न रह जाये अकेला, रहे संग सभी,

हँसते गाते यूँ ही जग में, न हो कोई दुविधा, किसी के मन में,

मिल-जुल विपत्ति से लड़कर, निराश न हो कभी जीवन में,

सबको सबकी यूँ ही रहे फ़िक्र, जग से सुंदर परिवार हमारा।

हर दिन आये लेकर सौग़ाते, खुशियाँ सब एक-दूजे से बाँटें,

गीत सुहाने रहे सजे लबों पर, दिन हो होली, दिवाली रातें।

अपनी बस कहे न कोई, हो सुखी सुन सब आपस की बातें,

खुशियों की बरसातें हों, सुंदर उपवन सा घर-संसार हमारा।

तुम संग बंधा हुआ ये जीवन, तुम ही मेरे जीवन का मधुबन,

तेरी तपस्या से ही खिला हुआ, सुंदर पुष्प अपने घर-आँगन।

यूँ ही जन्म-जन्म मेरे साथी, साथ तेरा रहे बना प्यार हमारा,

न हो कोई यूँ पराया, रहे परिवार का बना हमारा भाई-चारा।

कविता – वो शख्स जानें किधर गया

वो हर किसी की नज़र से, उतर गया,

तहज़ीब की हदों से, जो गुज़र गया।

पाकर मुकाम अपना, रौशन है जहां में,

इज़्ज़त वालिदैन की, अपने जो कर गया।

हर इक आस जुड़ी उससे, भरोसा उसी का,

बात पर अपनी यहाँ, खरा जो उतर गया।

रात ग़म की थी लम्बी बहुत, स्याह चाँदनी भी,

ख़ुद को डुबोया अश्क़ में, और यूँ निखर गया।

बस इक़ ग़लतफ़हमी ज़रा सी, यूँ ही दरम्यां,

मिलजुल के बनाया था जो, घरौंदा बिखर गया।

करता था सबकी इज़्ज़त, जो नेक था बड़ा मगर,

आता नहीं नज़र अब वो, शख्स जानें किधर गया।

इक़ मोहब्बत ही फ़क़त, रास न आई थी उम्रभर उसे,

नाम ख़ुद ही मोहब्बत के जो, कर सारी उमर गया।

सुनसान सी हैं बहुत अब, गलियाँ वो बहारों की सब,

छोड़ किसको जाने कौन, दुनिया से यूँ बसर गया।

उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

नवरात्र में माँ दुर्गा की कविता

नव दुर्गा माँ

माता की आराधना और उपासना की कविता।

नवरात्रि का त्यौहार आते ही माता की आराधना और उपासना में पूरा ब्रह्मांड माँ के स्वागत में जुट जाते है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ हमारे घर आगमन लेती है और इसी वजह से हम सब अपने घर की साफ-सफाई कर माता की पूजा में जुट जाते हैं। इस अवसर पर घर के द्वार पर फूल की माला और तोरण लगाकर माता का स्वागत करते हैं और नौ दिन माता के नव रूपों का स्मरण कर उनकी आराधना करते हैं उनकी पूजा करते हैं। माता के नव रूप का जिनकी पूजा हम करते हैं उनके नाम है – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

माता के नव रूपों का वर्णन करती कुछ कविताएं –

नवरात्रि में पूजे भक्तजन नव दुर्गे का हर स्वरूप।

नव रूप की महिमा सुनकर नवरात्रि का त्योहार मनाए सब।।

हाथ कमल, त्रिशूल धारण ‘शैलपुत्री’ के दर्शन कर। 

योगीजन तृप्त हुए नवरात्र के प्रथम आगमन पर।।

हाथ कमण्डल, जप की माला भव्य ज्योतिर्मय बना ‘ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप।

करें उपासना जो जन माता की अनंत फल प्राप्त करें वह।।

अर्धचंद्र मस्तक पर शोभे, वाहन सिंह सवार रहें। 

नाम ‘चंद्रघण्टा’ का जो ले परम शांति और कल्याण मिलें।।

देवी ‘कुष्माण्डा’ के चरणों में लौकिक पारलौकिक सुख मिलें।

कर उपासना चौथे दिन माँ का भव सागर से पार करें।।

कमल आसन पर विराजमान ‘पद्मासन’ देवी की जय जय।

स्कंद कुमार की माता बनकर ‘स्कंदमाता’ का स्वरूप बना।।

अमोघ फल दायिनी माँ ‘कात्यायनी’, कात्यायन की पुत्री बनी। 

अलौकिक तेज से युक्त हुआ माता की जो आराधना किया।।

ग्रह बाधा को दूर करें दुष्टों का विनाश करें। 

माँ ‘कालरात्रि’ की आराधना सातवें दिन जो जन ध्यान करें।।

‘महागौरी’ का ध्यान करें जन माँ सबका कल्याण करें।

रोग,दोष, क्लेश मिटाकर माता सबका उद्धार करें।।

सभी सिद्धियों को पाकर ‘सिद्धिदात्री’ माता कहलाती।

करें उपासना जो भक्तजन माँ हर मनोकामना पूर्ण करें।।

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी हर घर में आज आई है।

नवरूप के स्वागत में सगर विश्व ज्योत जलाई है।।

हर विपदा को हरने माता आज धरती पर आई है।

आंचल फैलाए रंक और राजा सब ने शीश झुकाई है।।

सबकी झोली भरने वाली सिंह पर सवार होकर आई है।

जय-जय गान करती धरती, कण-कण में उल्लास समाई है।।

ममता से सजी मुरत नव दुर्गा माँ स्वर्ग से उतर कर आई है। 

दशो भुजाओं से मानस का उद्धार करने माता आई है।।

भजन, कीर्तन, भोग आरती की थाल सबने सजाई है। 

महादेव के साथ माता आज साक्षात दर्शन देने आई है।।

Supriya Shaw

आज़ादी का दिन आया

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

कोरोना काल की कविता

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

आपके सपने और आत्मविश्वास

लेखक के क़लम द्वारा पाठकगण से एक गुज़ारिश

नज़र

दुनिया आपको किस नज़र से देखती है, 

या फिर

आप दुनिया को किस नज़र से देखते हैं, 

ये बात बिल्कुल भी मायने नहीं करता,

फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है,

कि आप स्वयं को किस नज़र से देखते हैं। 

जब तक आप अपनी नज़र में हैं,

तब तक दुनिया की कोई भी ताकत,

आपके इरादों को, हौसलों को, 

आपके सपनों को, आपके आत्मविश्वास को,

चाहकर भी नहीं तोड़ सकती, 

चाहे वो कितनी भी कोशिश कर लें। 

लेकिन वही जब आप पूर्णतः

अपनी ही नजरों से ही गिर जाएंगे ना,

तब आपके जीवन रुपी नौका को, 

मझधार में डूबने से कोई नहीं बचा सकता, 

आपको डूबने से बचाने की, 

चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर लें।

(इसलिए आप – हम सब हमेशा ही अपने नजरों में रहें । ऐसा करने पर ही हम, आप सब संघर्ष रुपी इस जीवन में सदैव अपनी – अपनी विजय – पताका लहरा पाएंगे, हर मुसीबतों, हर बाधाओं के ऊपर और लिखेंगे अपनी कामयाबी की दास्ताँ जिसकी आवाज सदियों सदियों तक रह पायेंगी इस नश्वर संसार में।)

यादों के खंडहर

यादों के खंडहर में कैद हैं, 

जीवन के अनगिनत लम्हें,

जो लौटकर आते नहीं कभी।।

हाँ, वो जो अनगिनत लम्हें हैं ना,

वो कुछ खुशी के तो कुछ गम के हैं,

हाँ, वो ही बन गये हैं अतीत ।। 

आ जाते हैं उभरकर कभी – कभी,

आंखों की गहराइयों में,

वो लम्हें हकीकत नहीं, प्रतिच्छाया बनकर।। 

होता है जब कभी ये चंचल मन स्थिर कभी,

तन्हाई और अकेलेपन में खुद को पाकर,

हंस देता है कभी-कभी, रो देता है कभी-कभी।। 

और निभाती है तब साथ उस चंचल मन का,

बस सिर्फ आंखें, दिल, और ओंठ ही।।

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को 

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

कर देती है स्वयं को समर्पित, 

जो समस्त संसार की खुशियों में, 

अपनी निजी खुशियों का दामन त्याग कर, 

और बन जाती है उदाहरण,

समस्त प्रेम कहानियों के लिए,

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

होती है बेहद ख़ूबसूरत,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

जो प्राप्त कर लेती है अपनी मंज़िल. 

और बिखेर देती है चहुँ ओर खुशियाँ, 

अपनी निजी खुशियों के रंगों में रंग कर, 

और बन जाती है उदाहरण, 

समस्त प्रेम कहानियों के लिए, 

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

Kids Short Stories

Life Thoughts 

Motivational Poem

कविता । कोरोना महामारी में इंसान की उम्मीद ना टूटे कभी

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना, दिल में आस जलाये रखना,

माना परिस्थितियाँ आज विकट है, पर ये शाश्वत नहीं । 

वक्त हमेशा रहता नहीं एक जैसा, ये वक्त भी बदल जायेगा,

खुशियों भरा सवेरा फिर से आयेगा, बस धैर्य तुम अपना बनाये रखना। 

ये महामारी रूपी संकट के बादल जो छाए हैं चहुँ ओर छंट जायेंगे,

क्या हुआ जो अंधियारा घना छाया है , अंधियारों के बीच सितारे चमकते नजर आयेंगे।

धैर्य तुम अपना ना खोना कभी

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना। 

राहों में ख़ुशी मिले या ग़म आत्मसंयम की पतवार हर पल थामे रखना , 

जज़्बात रुपी मझधार में हमेशा उलझ कर तुम ना रह जाना। 

लहरों के विपरीत होता चलना कभी भी बेहद आसान नहीं, 

करके अपने अंतर्मन की शक्तियों पर विश्वास बस निरंतर आगे बढ़ते जाना। 

डर के साये से बाहर निकल कोशिशें बारंबार करते जाना, 

पर तुम हार ना मानना कभी, चाहे हो जाए क्यों ना कुछ भी। 

प्रयासों का कारवां रहे जब रहे संग, साहिल तुझे अपना मिल पाएगा तभी,

मत होना निराश बस रख आस, कभी साकार हो जायेंगे सपने सभी। 

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई, जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना।

अंजाम की फ़िक्र

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे ! बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

आये सफर-ए-जीवन में मुश्किलें कितनी भी, घबराकर उनसे ना बदलना राहें।

हार में भी तुम्हें अपनी जीत मिलेगी, हमेशा उनसे नयी-नयी सीख मिलेगी।

कोशिशें तुम अथक करना, अंधेरे में भी सदा रोशनी भरना।

मिलेगी मंज़िल एक दिन विश्वास रखना, अंतर्मन में हमेशा ये आस रखना।

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

उत्तराखंड की ऐपण कला

स्त्री विषयी कविता

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